बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

कुछ मेरे मन की तू जाने

कुछ मेरे मन की तू जाने

कुछ तेरे मन की मैं जानूँ 

कुछ मेरे आँसू तू पी ले 

कुछ तेरे गम मैं पहचानूँ 


मन को मन का, मन से जो मिला

जीवन हर्षित कर जाएगा

मन का मकसद, मन की हसरत

मन को पुलकित कर जाएगा


जब पास तुम्हारे आऊँगा

ख़ुशियों से मन भर जाएगा

कुछ खुशी से आँखें छलकेंगी 

कुछ पागलपन छा जाएगा


कुछ हरी दूब के बिस्तर पर

कुछ नदी तीर के पत्थर पर

कुछ हाथ पकड़कर बैठेंगे 

कुछ सपना सच हो जाएगा


कुछ साँसें मिलकर साँसों से 

इक नई कहानी लिखेंगी 

कुछ पंक्ति नई जुड़ जाएगी 

और कुछ पन्ना उड़ जाएगा


कुछ कदम हाथ में हाथ लिए

कुछ राह कहीं मूड़ जाएगी

कुछ नजर कहीं झुक जाएगी 

कुछ पास नजर आ जाएगा 


कुछ डाल पे चिड़ियाँ बैठेंगी 

और कुछ पत्ता हिल जाएगा 

कुछ हम और तुम भी बोलेंगे 

कुछ सन्नाटा छा जाएगा 


कुछ बदली से छा जाएगी

कुछ अंधियारा हो जाएगा 

कुछ और पास आ जाएँगे 

कुछ मन चंचल हो जाएगा


दिल की धड़कन बढ़ जाएगी 

कर में कम्पन हो जाएगा 

मन स्पन्दित हो जाएगा 

कुछ तापमान बढ़ जाएगा


कुछ हल्की बूँदें बरसेंगी 

कुछ तन और मन भी भीगेगा

कुछ कहीं पे बिजली कड़केगी 

कुछ उजियारा हो जाएगा


कुछ सर्द गर्म कुछ गर्म सर्द 

अहसासों की नरमी होगी 

कुछ बरफ यहाँ भी पिघलेगी 

और कुछ पानी जम जाएगा


कुछ हवा के झोंके आएंगे 

कुछ जुल्फ तेरे लहराएँगे 

कुछ नरम मुलायम कोमल सा

अद्भुत अहसास दिलाएगा


-श्री नारायण शुक्ल, २-अक्तूबर-२०२४




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? लिखें।

कुछ मेरे मन की तू जाने

कुछ मेरे मन की तू जाने कुछ तेरे मन की मैं जानूँ  कुछ मेरे आँसू तू पी ले  कुछ तेरे गम मैं पहचानूँ  मन को मन का, मन से जो मिला जीवन हर्षित कर ...