गुजर गई उम्र अब
अकड़ कहाँ रही अब
बाट रोटियों की ही
नजर जोहती है अब
कुदरती निजाम है
हर किसी का नाम है
आज तेरे साथ है
हो रही जो बात ये
कल सभी के साथ भी
होनी यही बात है
जो तुम्हें गुरूर था
उस बलिष्ठ देह पर
गल चुकी है देह वो
दैव के विधान से
जो यहाँ पे आया है
जाएगा अवश्य ही
तन रहे जमीन पर
प्राण आसमान में
-श्री नारायण शुक्ल, १३-नवम्बर-२०२३
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