सूखे हुए गालों पर
रूखे हुए बालों पर
सिकुड़ गई खालों पर
ढले हुए यौवन पर
टूटे हुए इस तन पर
दिल कैसे आता है
मन को ये भाता है
जन्मों का रिश्ता है
जन्मों का नाता है
यौवन क्षणभंगुर है
तन को जल जाना है
अंतहीन बस मन है
मन के संबंधों का
मन के अनुबंधों का
मन ने ही जाना है
मन ने ही माना है
-श्री नारायण शुक्ल, १०-नवम्बर-२०२३
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? लिखें।