कि यार हो कि प्यार हो कि तुम सदाबहार हो
कि जिंदगी की जीत हो कि तुम गले का हार हो
कि प्यार की किताब हो कि सिर्फ तुम हिसाब हो
की नूर आँख का हो या कि सिर्फ एक ख्वाब हो
कि चाँद रात का हो या कि दिन का आफताब हो
सवाल का जवाब हो कि खुद ही एक सवाल हो
बुझी बुझी सी आग हो कि जल रही मशाल हो
कि बेमिसाल हो कि या कि खुद ही एक मिसाल हो
जमालियत की जानकार या कि खुद जमाल हो
सदाबहार का खिला सा गुल हो की कमाल हो
फिराक हो नहीं अगर तो क्या तुम्हीं विसाल हो
कि यार हो कि प्यार हो कि तुम सदाबहार हो
-श्री नारायण शुक्ल, १७-अक्तूबर-२०२३
शब्दार्थ:
नूर-तारा, ख्वाब-सपना, आफताब-सूरज, बेमिसाल-अनुपम, मिसाल-उदाहरण, जमालियत-सौंदर्य शास्त्र, जमाल-सौंदर्य, गुल-फूल, फिराक-जुदाई, विसाल-मिलन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? लिखें।