मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023

कलयुग में सीता कहाँ मिलें

कलयुग में सीता कहाँ मिलें 

पतिव्रता पुनीता कहाँ मिलें 

पर अग्निपरीक्षा लेने वाले 

राम अनेकों दिखते हैं।


कलयुग में श्रवणकुमार कहाँ 

जो मात-पिता की काँवर लें 

पर बंदीगृह में पिता रखे 

वे कंस अनेकों दिखते हैं।


कलयुग में आरुणी कहाँ 

जो गुरु आज्ञा पर मिट जाएँ 

पर अन्ना के अरविंद सरीखे 

शिष्य अनेकों दिखते हैं।


कलयुग में लक्ष्मण कहाँ दिखें 

जो भ्राता के अनुगामी हों  

पर दुर्योधन-दुःशासन से 

तो बंधु अनेकों दिखते हैं। 


कलयुग में सच्चे संत कहाँ 

जो धर्ममार्ग पर चलते हों 

पर बापू आसाराम सरीखे 

दुष्ट अनेकों दिखते हैं। 


-श्री नारायण शुक्ल, २४-अक्तूबर-२०२३ विजयदशमी

 

सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

सदाबहार!

कि यार हो कि प्यार हो कि तुम सदाबहार हो

कि जिंदगी की जीत हो कि तुम गले का हार हो

कि प्यार  की किताब हो कि सिर्फ तुम हिसाब हो 

की नूर आँख का हो या कि सिर्फ एक ख्वाब हो 


कि चाँद रात का हो या कि दिन का आफताब हो 

सवाल का जवाब हो कि खुद ही एक सवाल हो 

बुझी बुझी सी आग हो कि जल रही मशाल हो 

कि बेमिसाल हो कि या कि खुद ही एक मिसाल हो 


जमालियत की जानकार या कि खुद जमाल हो 

सदाबहार का खिला सा गुल हो की कमाल हो 

फिराक हो नहीं अगर तो क्या तुम्हीं विसाल हो 

कि यार हो कि प्यार हो कि तुम सदाबहार हो


-श्री नारायण शुक्ल, १७-अक्तूबर-२०२३


शब्दार्थ: 

नूर-तारा, ख्वाब-सपना, आफताब-सूरज, बेमिसाल-अनुपम, मिसाल-उदाहरण, जमालियत-सौंदर्य शास्त्र, जमाल-सौंदर्य, गुल-फूल, फिराक-जुदाई, विसाल-मिलन



शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023

तब तकलीफ बहुत होती है

भोलेपन का लाभ उठाकर

भीतर भीतर घात लगाकर

गले लगाकर गला दबाकर

जब कोई अपना छलता है

तब तकलीफ बहुत होती है।

तब तो दर्द बहुत होता है।


मेरी ही थाली में खाकर

मेरी ही प्याली में पीकर

जब मेरी अपनी ही बिल्ली

मुझसे ही म्याऊँ करती है

तब तकलीफ बहुत होती है।

तब तो दर्द बहुत होता है।


मेरे ही ऊपर जब चढ़कर

मेरे ही लिखे को पढ़कर

मेरा कहा मुझे ही कहकर

धक्का देकर बढ़ जाता है

तब तकलीफ बहुत होती है

तब तो दर्द बहुत होता है


-श्री नारायण शुक्ल, १३-अक्तूबर-२०२३

 

रविवार, 1 अक्टूबर 2023

क्या गलत उसने किया था?

घर से उजड़ों को बसा कर 

त्यक्त को सम्मान देकर 

धूल थे जो इस धरा के 

उन्हें सीने से लगाकर 

क्या गलत उसने किया था?


बेसहारों को सहारा 

और कुछ अवलम्ब देकर

गुण सिखाकर 

और कुछ देकर भरोसा 

क्या गलत उसने किया था?


बेचकर खुद को

खुदाई के सहारे 

इक नया मंजर बनाकर

रंग भर कर

क्या गलत उसने किया था?


दिल से सोचा 

दिल की माना 

मगज को करके किनारे 

करके अपने मन को आगे 

क्या गलत उसने किया था?

 

-श्री नारायण शुक्ल, २-अक्टूबर-२०२३


ये अंधेरा भी छँटेगा

ये अंधेरा भी छँटेगा 

ये कुहासा भी हटेगा

फिर दुबारा प्रात होगी

फिर हमारी बात होगी


फिर से बाँछें ये खिलेंगी 

अन्त इस सूखे का होगा

फिर हरे ये पात होंगे 

फिर यहाँ बरसात होगी


फिर मिटेंगी दूरियाँ ये 

साथ अब फिर से मिलेगा

उलझनें फिर से मिटेंगी 

फिर हमारा साथ होगा 


रोशनी फिर से दिखेगी 

फूल भी फिर से खिलेंगे 

साँस जो रुक सी गई थी 

फिर चलेगी

हाथ में फिर हाथ होगा 

कदम फिर से संग चलेंगे 

श्री पुनः श्री नाथ होगा। 


-श्री नारायण शुक्ल, २-अक्टूबर-२०२३

कुछ मेरे मन की तू जाने

कुछ मेरे मन की तू जाने कुछ तेरे मन की मैं जानूँ  कुछ मेरे आँसू तू पी ले  कुछ तेरे गम मैं पहचानूँ  मन को मन का, मन से जो मिला जीवन हर्षित कर ...