तब ऐसा क्यों था, अब ऐसा क्यों है?
तब दुनिया मेरी तेरी थी अब दुनिया सबकी अलग-अलग
तब मुझसे तेरा सब कुछ था अब तेरा मेरा अलग-अलग
तब एक इशारा काफी था अब लाख इशारे बेमतलब
तब मेरी साँसें तेरी थी अब सबकी साँसें अलग-अलग
तब मेरी हँसी तुम्हारी थी और रोना मेरा तेरा था
अब हँसना भी है अलग-अलग और रोना भी है अलग-अलग
तब एक जान दो जिस्में थीं, अब जिस्म अलग है जान अलग
तब मेरा रस्ता तेरा था, अब सबके रस्ते अलग-अलग
तब नाम समर्पण था तेरा, अब अधिकारों से है मतलब
दिन रात दौड़ती रहती तब, अब कामकाज है बेमतलब
-श्री नारायण शुक्ल, ७-अगस्त-२०२३
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