रविवार, 6 अगस्त 2023

तब ऐसा क्यों था, अब ऐसा क्यों है?

तब ऐसा क्यों था, अब ऐसा क्यों है?

तब दुनिया मेरी तेरी थी अब दुनिया सबकी अलग-अलग

तब मुझसे तेरा सब कुछ था अब तेरा मेरा अलग-अलग

तब एक इशारा काफी था अब लाख इशारे बेमतलब 

तब मेरी साँसें तेरी थी अब सबकी साँसें अलग-अलग

तब मेरी हँसी तुम्हारी थी और रोना मेरा तेरा था 

अब हँसना भी है अलग-अलग और रोना भी है अलग-अलग 

तब एक जान दो जिस्में थीं, अब जिस्म अलग है जान अलग 

तब मेरा रस्ता तेरा था, अब सबके रस्ते अलग-अलग

तब नाम समर्पण था तेरा, अब अधिकारों से है मतलब

दिन रात दौड़ती रहती तब, अब कामकाज है बेमतलब  

-श्री नारायण शुक्ल, ७-अगस्त-२०२३

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? लिखें।

कुछ मेरे मन की तू जाने

कुछ मेरे मन की तू जाने कुछ तेरे मन की मैं जानूँ  कुछ मेरे आँसू तू पी ले  कुछ तेरे गम मैं पहचानूँ  मन को मन का, मन से जो मिला जीवन हर्षित कर ...