मंगलवार, 29 अगस्त 2023

अंतर्मन से प्रेरणा मिली, मैंने सपना साकार किया

चौरीचौरा में जन्म लिया, मैंने उन्नीस सौ पैंसठ में

वह युद्धकाल था, संकट था, पूरे भारत पर, जन-जन में 

बचपन की अच्छी याद नहीं, छोड़ा घर जब मैं था बच्चा

तिरुचि में अपनी सोचों को मैंने एक लघु आकार दिया


कक्षा बारह तक शिक्षा थी, आगे बढ़ने की ईच्छा थी।

अंतर्मन से प्रेरणा मिली, मैंने सपना साकार किया।

डिप्लोमा करके डिग्री की, और एम बी ए भी कर डाला।

अभियंता का पद पाकर के, बाधाएँ सारी पार किया


इक सपना था जाऊँ विदेश, कुछ धन-सम्मान कमाने को

कुछ अपना और कुछ अपनों का, उज्जवल भविष्य बनाने को 

ये सपना भी संपूर्ण हुआ, पर कीमत बड़ी चुकाने पर

सब कुछ तो इसने लील लिया, मेरा सर्वस्व गँवाने पर


अब अट्ठावन की उमर हुई, कुछ रहा नहीं समझाने को

गोली अट्ठारह खाता हूँ, साँसों को नित्य चलाने को 

जी चुका स्वयम् के लिए बहुत, अब जीता हूँ अपनों के लिए

कोई दरकार नहीं मुझको, सच्चा इसको ठहराने को


विधि का है होता जो विधान, इंसान वही कुछ करता है

कुछ सही नहीं, कुछ गलत नहीं, जो करना है वो करता है

अब पुनरजनम में ही संशोधन, मैं इनमें कर पाऊँगा 

जो किया यहाँ इस जीवन में, फल इसका अंगीकार किया 


अंतर्मन से प्रेरणा मिली, मैंने सपना साकार किया


-श्री नारायण शुक्ल, ३०-अगस्त-२०२३

रविवार, 27 अगस्त 2023

रेखाएँ कैसी होती हैं?

हाथों पर हों तो भाग्य बने 

या जीवन का दुर्भाग्य बनें 

धरती पर ये इतिहास बनें

कहीं हिन्द बने कहीं पाक बने

 

पत्थर पर हों तो शिलालेख

और हों ललाट पर तो चिंता

जो रेखा खींची लक्ष्मण ने 

तो रावण ने हर ली सीता


कुछ रेखाएँ मर्यादा की 

कुछ रेखाएँ होतीं अदृश्य 

कुछ रेखाएँ संग-संग चलतीं 

और कुछ रेखाएँ बहुत दूर


खेलों में भी सीमा रेखा 

का मतलब होता अलग-अलग 

उस पार गिरे तो है ताली

इस पार लपक लो तो गाली


इक रेखा खिंची गरीबी की

इक रेखा बनी अमीरी कि 

इस पार गरीबों की बस्ती 

उस पार अमीरी है पलती


छोटी रेखा लंबी रेखा 

आड़ी रेखा सीधी रेखा 

कहीं जात-धरम वाली रेखा

कही ऊँचे-नीचे की रेखा


निर्धन-धनवानों की रेखा

और जात-धरम वाली रेखा

या ऊँचे-नीचे की रेखा

क्या रेखाएँ मिट पायेंगी?

या आपस में मिल जाएँगी? 


-श्री नारायण शुक्ल   २८-अगस्त-२०२३

रविवार, 13 अगस्त 2023

सपने व्यर्थ बुना करते हो।

सपने व्यर्थ बुना करते हो।

तिनके व्यर्थ चुना करते हो।

सपनों से क्या मन भरता है?

तिनकों से क्या घर बनता है?


बीती रात, खो गए सपने। 

बीता समय, उड़ गए अपने।

अपने क्या अपने होते हैं?

अपनों पर तुम क्यों रोते हो?


आस लगाए क्यों बैठे हो?

नजर गड़ाए क्यों बैठे हो?

करो करम और कदम बढ़ाओ। 

ऐसे ही मन मत भरमाओ


कुछ होने का भ्रम करते हो?

ऐसे ही क्यों दम भरते हो?

ना कुछ हो और ना कुछ थे तुम,

बस ऐसे हम-हम करते हो।

सपने व्यर्थ बुना करते हो।

-श्री नारायण शुक्ल, 14-अगस्त-2023


रविवार, 6 अगस्त 2023

तब ऐसा क्यों था, अब ऐसा क्यों है?

तब ऐसा क्यों था, अब ऐसा क्यों है?

तब दुनिया मेरी तेरी थी अब दुनिया सबकी अलग-अलग

तब मुझसे तेरा सब कुछ था अब तेरा मेरा अलग-अलग

तब एक इशारा काफी था अब लाख इशारे बेमतलब 

तब मेरी साँसें तेरी थी अब सबकी साँसें अलग-अलग

तब मेरी हँसी तुम्हारी थी और रोना मेरा तेरा था 

अब हँसना भी है अलग-अलग और रोना भी है अलग-अलग 

तब एक जान दो जिस्में थीं, अब जिस्म अलग है जान अलग 

तब मेरा रस्ता तेरा था, अब सबके रस्ते अलग-अलग

तब नाम समर्पण था तेरा, अब अधिकारों से है मतलब

दिन रात दौड़ती रहती तब, अब कामकाज है बेमतलब  

-श्री नारायण शुक्ल, ७-अगस्त-२०२३

कुछ मेरे मन की तू जाने

कुछ मेरे मन की तू जाने कुछ तेरे मन की मैं जानूँ  कुछ मेरे आँसू तू पी ले  कुछ तेरे गम मैं पहचानूँ  मन को मन का, मन से जो मिला जीवन हर्षित कर ...