जो किया था जो दिया था
शून्य उसने कर दिया अब
साथ देना साथ लेना
शून्य उसने कर दिया अब
लालसा वश भावना को
शून्य उसने कर दिया अब
कामना वश साधना को
शून्य उसने कर दिया अब
त्याग कब उसने किया था?
प्यार कब उसने किया था?
साथ कब उसने दिया था?
हाथ कब उसने दिया था?
जो किया वह स्वार्थ था क्या?
था दिखावा व्यर्थ का क्या?
क्यों छला? क्या दोष मेरा?
क्यों भुलाया भाव मेरा?
छाँव जो मैंने दिया था
घाव उसने क्यों दिया अब
भला जो मैंने किया था
शून्य उसने कर दिया अब
स्वर्ण अंडे देने वाली को
अचानक मार डाला
डाल पर बैठे हुए ही
डाल उसने काट डाला
-श्री नारायण शुक्ल, 20-मई-2023
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