शनिवार, 20 मई 2023

शून्य उसने कर दिया अब

जो किया था जो दिया था

शून्य उसने कर दिया अब

साथ देना साथ लेना

शून्य उसने कर दिया अब


लालसा वश भावना को

शून्य उसने कर दिया अब

कामना वश साधना को

शून्य उसने कर दिया अब


त्याग कब उसने किया था?

प्यार कब उसने किया था?

साथ कब उसने दिया था?

हाथ कब उसने दिया था?


जो किया वह स्वार्थ था क्या?

था दिखावा व्यर्थ का क्या?

क्यों छला? क्या दोष मेरा?

क्यों भुलाया भाव मेरा?


छाँव जो मैंने दिया था

घाव उसने क्यों दिया अब

भला जो मैंने किया था

शून्य उसने कर दिया अब


स्वर्ण अंडे देने वाली को

अचानक मार डाला

डाल पर बैठे हुए ही

डाल उसने काट डाला



-श्री नारायण शुक्ल, 20-मई-2023


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? लिखें।

कुछ मेरे मन की तू जाने

कुछ मेरे मन की तू जाने कुछ तेरे मन की मैं जानूँ  कुछ मेरे आँसू तू पी ले  कुछ तेरे गम मैं पहचानूँ  मन को मन का, मन से जो मिला जीवन हर्षित कर ...