शनिवार, 28 जनवरी 2023

चौरीचौरा की खास मिठास



पारम्परिक स्थलों पर वहाँ की विशेष चीजें दिखती हैं। और खाने-पीने की पारम्परिक चीजों के तो क्या कहने। स्थानीय उद्यमी नित-नूतन प्रयोग करते रहते हैं। अभी हाल ही में चौरीचौरा जाना हुआ। बाजार में जहाँ प्रसिद्ध शंकर की चाय की दुकान हुआ करती थी वहाँ दो ठेले लगते हैं। एक में शंकर का नाती चाय बेचता है और दूसरे में एक किशोर मिठाई बेचता है। छोटी सी दुकान, ठेले पर। धर्मवीर भारती की रचना “ठेले पर हिमालय” की याद आ गई। इसके ठेले पर तो मानों चाँदनी चौक की पूरी हल्दीराम की दुकान समाई हुई थी। इसका खास आइटम मिठाइयों का घमंजा जैसा था। चालीस रुपये में जाने क्या क्या। थोड़ा गाजर का हलवा, थोड़ा मूँग का हलवा, थोड़ी रबड़ी, थोड़ा कच्चा तजा पनीर, थोड़ी बूंदी, थोड़ी ताजी मलाई और अनेकों चीजें। साथ में जिसने भी खाया, बस एक ही बात कही- जीवन में इतना स्वाद पहले कभी नहीं आया।

 

भ्रष्टाचार के पाये चार

भ्रष्टाचार के पाये चार-
पहले पाये बैठे नेता, 
दूजे पाये पर अधिकारी, 
तीजे पर बैठे व्यापारी, 
चौथे पर हैं पत्रकार. 

नेता जी का पेट अथाह, 
गुण्डों को हैं दिये पनाह, 
रुपये पैसे की है गाह, 
फिर भी इनकी मिटे न चाह.

साहब की मत पूछो बात, 
नेता जी से सांठ-गांठ, 
हिस्सा खाते हैं, मिल-बांट, 
कोई न पाये इनके ठाठ. 


साहूकार भी साझेदार, 
रुपये का है चमत्कार, 
इनकी जेब मे है सरकार, 
तेल के इनकी देखो धार. 

प्रेस के पीछे साहूकार, 
नहीं है सच्चा पत्रकार, 
जिसकी खाए, उसकी गाए, 
मालिक का हो बेड़ापार. 
जनता का हो बंटाधार, 
भ्रष्टाचार के पाये चार..

-श्री नारायण शुक्ल

शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

मैं और मेरी परेशानियाँ

मैं और मेरी परेशानियाँ 

अक्सर ये बातें करते हैं

तुम सब ना होतीं

तो कैसी होती जिंदगी?

नीरस, बेजान

जैसे रसायनशास्त्र में पढ़ा कोई लवण

रंगहीन-गंधहीन-स्वादहीन

तुम सब कितनी रंगीन होती हो

तुम्हारे रूप अनगिनत होते हैं

कोई दाएँ से आती हो 

तो कोई बाएँ से 

और सामने वाली को देखता हूँ 

तो ऊपर से टपक जाती हो 

कोई छोटी सी 

कोई बड़ी 

तो कोई बहुत बड़ी

तुम सबके कारण ही तो 

मिलती है प्रेरणा 

नित्य सुबह उठने की 

और काम पर लग जाने की 

और कोई साथ दे या ना दे 

तुम सबका तो सदा ही साथ रहता है 

आती जाती रहो 

जीवन में रंग बिखेरती रहो 

अच्छे रंग, तीखे रंग और कुछ सादे रंग भी 

तुम सबके कारण ही तो 

जीवन की नाव हिचकोले खाती है 

सोचो, यदि तुम सब ना होतीं 

तो नाव का सफर मालूम ही नहीं चलता

तुम सबसे मिलकर 

बातें कर

अच्छा लगता है

तुम सबसे ही जीवन है 

जीवन का आभास है 

कुछ करते रहने का विश्वास है 

आती रहो, अकेले-अकेले 

झुंड में मत आओ

ऐसा नहीं है कि तुम सबके झुंड से डरता हूँ 

बुरा लगता है कि 

झुंड में आओगी तो पूरा सत्कार नहीं हो पाएगा

अच्छा तो अब चलते हैं 

कल फिर मिलेंगे


-श्री नारायण शुक्ल (3-नवम्बर-2022)

दिल और दिमाग की लड़ाई

आज फिर सुबह की शुरुआत
हो जाओ तैयार
ग्राहकों की चिल्लाहट
अधीनस्थों की सुगबुगाहट
ढेरों ईमेल, कर रहे इंतज़ार
जवाब का
रुपया कमाने का दबाव
देता है तनाव
पैसे और सुकून में
कैसे हो चुनाव
खेल है सारा, दिमाग का
सिर्फ दिमाग का
लेकिन दिल है कि
जोर देता है
खेलो
दिमाग का खेल
मगर दिल से
केवल दिमाग से खेलोगे तो
जीतोगे तो सही
लेकिन मजा बिलकुल नहीं आयेगा
क्योंकि मजा दिल से आता है
दिमाग से नहीं
दिमाग से तो बस
आती है अशांति
असंतोष
संताप
तो फिर
भाई मेरे,
दिमाग का खेल
दिल से खेलो


-श्री नारायण शुक्ल

हमारा सिंगापुर

सुंदर सा छोटा सा प्यारा शहर है
ना गोली ना गाली, निराला शहर है
सभी को दे मौका, ना धक्का ना मुक्का
सभी हैं सुरक्षित,  यहाँ सबको घर है
बहुत खूबसूरत हमारा शहर है


ना खेती ना बाड़ी ना पीने का पानी
सिरफ आदमी हैं,  समर्पित मगर हैं
नियम से हैं चलते नियम पर सफर है
ना गुंडे मवाली ना रहजन इधर हैं
बहुत साफ सुथरा हमारा शहर है


ना गलियाँ ना कूचे ना हैं अंधे कोने
ना बिजली है जाती ना बुझते हैं चूल्हे
नहीं हैं भिखारी ना हैं भटके भूले
हरा है भरा है और लटके हैं झूले
ये कुदरत का प्यारा नवाजा शहर है


ना हिंसा ना दंगा, व्यवस्था सबल है
ना चोरी ना डाका, ना होता है फाका
सभी को है रोजी, सभी को है रोटी
बिना काम करके नहीं तो गुजर है
हमें हो मुबारक, हमारा शहर है


-श्री नारायण शुक्ल

सामानों से छुटकारा लो और जीवन को आसान करो

सामानों से छुटकारा लो और जीवन को आसान करो 
कुछ को बाँटो, कुछ को बेचो, कुछ को फेंको, कुछ दान करो 
हर ग़ैरज़रूरी चीजों को तुम झटपट अंतरध्यान करो 
सोचो जब छोटे बच्चे थे, पहने बंडी और कच्छे थे 
बिस्कुट टॉफ़ी ही दुनिया थी, तुम अच्छे थे, सब अच्छे थे।
पापा अच्छे, मम्मी अच्छी, वो सच्चे थे, तुम सच्चे थे।
अब सबका अपना कमरा हो, और कमरों में  अलमारी हो 
अलमारी में सब चीजें हों और चीजें सारी प्यारी हो 
ये सब चीजें दुखदाई हैं ये अपनी नहीं पराई हैं 
इन चीजों से मत मोह करो, दे दो मुश्किल के मारों को 
तुम दे दो बिना सहारों को, ना इनपे झूठी शान करो 
ना इनका कभी बखान करो, ना तुम इनपर अभिमान करो 
गौतम, नानक भी कहते हैं, दुःख इच्छाओं में रहते हैं 
इच्छा त्यागो, मिथ्या त्यागो, अपने सुख का सामान करो 
सामानों से छुटकारा लो और जीवन को आसान करो  


-श्री नारायण शुक्ल

फायदा

कुछ कहीं पर फायदा होता दिखा तो झुक लिए, 
फायदे की बात हो तो बात होनी चाहिए।
चल पड़ेंगे गर बुलाओ दावतों में तुम इन्हें,
बस मगर दावत में सब कुछ खास होना चाहिए।
बिकेंगे बस इक लिफाफे पर हमेशा साहिबाँ, 
बस रकम उसमें लिफाफा भर के होनी चाहिए।
दीन ना इनका कोई, ना ही कोई ईमान है,
धन में है मन, धन ही जीवन, ध्येय धन ही चाहिए। 
धन ही सेवा, धन ही मेवा, धन दिखा तो रुक लिए, 
मन से ज्यादा धन से इनको प्यार होना चाहिए।


-श्रीनारायण शुक्ल

गुरुवार, 26 जनवरी 2023

तुम मरो तो देवता हो जाओगे

तुम मरो तो देवता हो जाओगे। 
पंच तत्वों में मिलोगे
चित्र बन कर फ्रेम में टँग जाओगे
सब कहेंगे नेक थे तुम 
सुन नहीं तुम पाओगे
तुम मरो तो देवता हो जाओगे 


पुष्प भी तुम पर चढ़ेगा
धूप बत्ती भी जलेगी 
ना इन्हें तुम देख पाओ 
सूंघ भी इनको नहीं तुम पाओगे 
तुम मरो तो देवता हो जाओगे 

जान है जब तक बदन में 
काम कर लो 
नाम कर लो 
दूसरों की मुस्कुराहट 
आज अपने नाम कर लो 
आज जिनको देख सकते 
देख लो उन व्यक्तियों को
आँख मुँदते ही इन्हें तुम 
देख भी ना पाओगे 
तुम मरो तो देवता हो जाओगे।

-श्रीनारायण शुक्ल

कुछ मेरे मन की तू जाने

कुछ मेरे मन की तू जाने कुछ तेरे मन की मैं जानूँ  कुछ मेरे आँसू तू पी ले  कुछ तेरे गम मैं पहचानूँ  मन को मन का, मन से जो मिला जीवन हर्षित कर ...